परेशानी पब्लिक ट्रांसपोर्ट के साथ निजी वाहनों का हाल बेहाल
बूटीबोरी. शहर में कई सरकारी और निजी संस्थान अपने वाहनों पर पीयूसी (पॉल्यूशन अंडर कंट्रोल) लेने का दावा जरूर कर रहे हैं किंतु वाहनों से निकलने वाला काला धुआं कुछ और ही हकीकत बयां कर रहा है. सबसे ज्यादा बदहाल स्थिति में है पब्लिक ट्रांसपोर्ट. इनसे निकलने वाला काला धुआं लगातार सेहत खराब कर रहा है, इसके बाद भी संबंधित विभाग कार्रवाई में ढिलाई बरत रहा है जिससे लोग श्वास संबंधी समस्याओं के साथ कई घातक रोगों के शिकार होते जा रहे हैं.
उल्लेखनीय है कि आरटीओ विभाग में रजिस्टर्ड वाहनों में 15 प्रतिशत
वाहन ऐसे हैं जो अपनी अवधि पूर्ण कर चुके हैं. सीधे तौर पर कहें तो इन्हें 15 वर्ष से अधिक का समय हो चुका है. है नियमानुसार इन्हें चलन से बाहर होना चाहिए, लेकिन फिर भी बेरोकटोक चलाया जा रहा है. इनमें निजी संस्थान, कमर्शियल और आम आदमी सभी शामिल हैं. केन्द्र सरकार वर्ष 2030 तक पूरे देश में इलेक्ट्रक व्हीकल पूरी तरह लाने के दावे कर रही है, ये दावे कितने हकीकत में सही साबित होंगे ये तो समय बताएगा, लेकिन शहर की सड़कों पर काला धुआं उगल रहे वाहन लोगों को बीमार जरूर कर रहे हैं. इसका प्रमाण अस्पतालों में बढ़ते श्वास रोगियों की संख्या से मिलता है.
जागरूकता की कमी
■ शहर में अभी तक कोई बड़ा अभियान नहीं चलाया जा सका है.
■ जिसमें लोगों को इन वाहनों से निकलने वाले धुएं के हानिकारक प्रभावों के बारे में विस्तार से बताया जा सके.
■ छोटे उम्र के बच्चों में प्रदूषण से होने वाली बीमारियों की फेहरिस्त लंबी है.
■ ऐसे समय मास्क का उपयोग सड़क यात्रियों के लिए एक सुरक्षित उपाय है.
■ ज्यादातर वाहनों की उम्र 15 साल तक होती है.
इसके बाद इन्हें चलन से बाहर कर दिए जाने का नियम है.
■ लेकिन इन पुराने वाहनों का अलग से मार्केट शुरू हो गया है जिसका वार्षिक टर्नओवर करोड़ों में हैं